BJP vs Congress : केंद्रीय मंत्री एल मुरुगन ने तमिलनाडु राज्य की डीएमके सरकार पर आरोप लगाया कि दलितों के खिलाफ बड़े पैमाने पर अत्याचार हो रहे हैं और अब तो इस शासन में राज्य में राजनीतिक नेता भी सुरक्षित नहीं हैं।
मुरुगन ने मंगलवार को भाजपा मुख्यालय में कहा कि पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष वी पी दुरईसामी के नेतृत्व में भाजपा का एक प्रतिनिधिमंडल शाम को राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से मिलेगा और उनसे मामले में उचित कार्रवाई करने का अनुरोध करेगा।उस समय दुरईसामी सहित भाजपा की तमिलनाडु इकाई के वरिष्ठ नेता मौजूद थे।
केंद्रीय मंत्री ने कहा,मई 2021 में जब से डीएमके की सरकार आई है तब से राज्य में दलितों के खिलाफ अत्याचारों में अत्यधिक वृद्धि हुई है। एक सर्वे के अनुसार, राज्य में हर साल दलितों के खिलाफ अत्याचार के 2,000 से अधिक मामले दर्ज किए जाते हैं।
उन्होंने 2022 से दलितों के खिलाफ कथित अत्याचार की घटनाओं और राज्य में भाजपा नेताओं पर हमले और हत्या के मामले बताते हुए कहा कि इसके लिए मुख्यमंत्री एम के स्टालिन की सरकार पूरी तरह से दोषी हैं।
उन्होंने हाल ही में दलित नेता और बहुजन समाज पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के आर्मस्ट्रांग की हत्या कर दी गई।केंद्रीय मंत्री ने आरोप लगाया कि द्रमुक सरकार के शासन में राज्य में आम आदमी तो दूर राजनीतिक नेता भी सुरक्षित नहीं हैं।डीएमके की सरकार में अनुसूचित जाति के नेताओं और लोगों की कोई सुरक्षा नहीं है। द्रमुक सरकार में उन्हें उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि डीएमके दावा करती है कि वह सामाजिक न्याय की अग्रणी है,लेकिन पार्टी इस विचार का पालन नहीं कर रही है। राज्य में दलितों पर अत्याचार की घटनाओं के कारण सीएम स्टालिन को सामाजिक न्याय के बारे में बात करने का नैतिक अधिकार नहीं है।
कांग्रेस पर भी निशाना साधा
भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष उरुगन ने डीएमके की सहयोगी पार्टी कांग्रेस पर भी निशाना साधते कहा कि जहरीली शराब त्रासदी पर पार्टी की चुप्पी पर भी सवाल उठते हैं।जिसमें राज्य में कई लोगों की जान चली गई थी। उन्होंने कहा,कल्लाकुरिची की इस घटना की वजह से लगभग 70 लोगों की मौत हो गई थी। जिसमें से 40 प्रतिशत से अधिक लोग अनुसूचित जाति के थे।कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और पार्टी नेता राहुल गांधी वहां नहीं गए।
वही प्रदेश उपाध्यक्ष दुरईसामी ने आरोप लगाया कि इसके अलावा इस वर्ग के साथ जातिगत भेदभाव,शारीरिक उत्पीड़न की भी घटनाएं हो रही हैं। 2022 में आई एक संस्था की रिपोर्ट के अनुसार अनुसूचित जाति के 22 पंचायत अध्यक्षों को उनके कार्यालयों में कुर्सी तक उपलब्ध नहीं कराई गई थी।