Bihar Election 2025: धनबल, बाहुबल और आपराधिक विरासत – हलफनामों में उजागर हुआ बिहार की राजनीति का कड़वा सच

परिचय

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एक बार फिर राजनीति के पुराने सवाल लौट आए हैं—धनबल, बाहुबल और आपराधिक छवि वाले उम्मीदवारों का बोलबाला। चुनाव आयोग को दिए गए हलफनामों ने राज्य की राजनीति का कड़वा सच उजागर कर दिया है, जहाँ उम्मीदवारों की संपत्ति करोड़ों में है और आपराधिक मामलों की लंबी फेहरिस्त उनके साथ चल रही है।


हलफनामों में झलकता धनबल

चुनाव आयोग में दाखिल हलफनामों के अनुसार कई प्रत्याशियों की घोषित संपत्ति करोड़ों रुपये में है। पिछले चुनावों की तुलना में इस बार उम्मीदवारों की संपत्ति में औसतन 30–40% तक बढ़ोतरी देखी गई है।

  • कई उम्मीदवारों के पास कई संपत्तियाँ, लग्ज़री गाड़ियाँ और व्यवसायिक निवेश दर्ज हैं।
  • दिलचस्प बात यह है कि कुछ नेताओं ने खुद को “किसान” या “समाजसेवी” बताते हुए भी बड़ी संपत्तियाँ घोषित की हैं।

बाहुबल का प्रभाव: आपराधिक मामलों की लंबी सूची

बिहार की राजनीति में बाहुबलियों का असर आज भी कायम है। हलफनामों के मुताबिक—

  • बड़ी संख्या में उम्मीदवारों पर गंभीर अपराध, जैसे हत्या, अपहरण, और धमकी के मामले दर्ज हैं।
  • कई बार इन्हीं बाहुबलियों ने चुनावी मैदान में “जनप्रिय उम्मीदवार” बनकर वोट बटोरे हैं।

विश्लेषकों का कहना है कि बिहार में मतदाता अब इन आपराधिक रिकॉर्ड्स को गंभीरता से देख रहे हैं, लेकिन जातीय और स्थानीय समीकरण अभी भी निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।


मतदाता की नई सोच

2025 के चुनाव में युवाओं और नए मतदाताओं की संख्या अधिक है।
सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म के बढ़ते प्रभाव से अब मतदाता उम्मीदवारों के हलफनामे, शैक्षणिक योग्यता और केसों की जानकारी तक पहुँच पा रहे हैं।
इससे पारदर्शिता बढ़ी है, परंतु बदलाव कितना होगा—यह नतीजे बताएंगे।


राजनीतिक दलों की मुश्किलें

हर दल इस बार “साफ छवि” वाले उम्मीदवारों को उतारने की बात कर रहा है, लेकिन टिकट वितरण में अभी भी वही पुराने समीकरण देखे जा रहे हैं।
दल जानते हैं कि धन और प्रभावशाली नेटवर्क चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाते हैं।


निष्कर्ष

बिहार चुनाव 2025 एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर रहा है कि क्या राज्य की राजनीति सच में बदलाव की ओर बढ़ रही है, या फिर वही पुरानी परंपरा—धनबल, बाहुबल और आपराधिक विरासत—फिर से दोहराई जाएगी?
जनता की जागरूकता और मतदान का रुझान ही तय करेगा कि इस बार “कड़वा सच” बदलेगा या नहीं।

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