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Static Current in Body: सर्दियों में चीजों को छूते ही क्यों लगता है करंट? जानिए इसके पीछे की बड़ी वजह

Static Current in Body

Static Current in Body: सर्दियों के मौसम में अक्सर लोगों को किसी इंसान या चीज को छूते ही हल्का करंट जैसा महसूस होता है. यह एक सामान्य प्रक्रिया है, जिसे स्टैटिक इलेक्ट्रिसिटी(Static Electricity) कहते हैं. ठंड के मौसम में हवा में नमी कम हो जाती है, जिससे हमारे शरीर पर स्थिर चार्ज स्टैटिक चार्ज(static electricity) जमा हो जाता है. जब हम किसी धातु, इंसान या अन्य सतह को छूते हैं, तो यह चार्ज डिस्चार्ज होता है, और हमें झटका जैसा महसूस होता है. इसका मतलब यह नहीं कि हमारे शरीर में बिजली है, बल्कि यह एक भौतिक प्रक्रिया है जो सामान्य और अस्थायी होती है.

इस वजह से लगता है करंट (Static Current in Body)


हम सभी ने बचपन में पढ़ा है कि सभी चीजें परमाणु (Atom) से बनी होती हैं, जो इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन जैसे कणों से मिलकर बनते हैं. प्रोटॉन में पॉजिटिव (+) चार्ज, इलेक्ट्रॉन में नेगेटिव (-) चार्ज, और न्यूट्रॉन में कोई चार्ज नहीं होता. हमारे शरीर में भी ये कण मौजूद होते हैं, और सामान्य स्थिति में प्रोटॉन और इलेक्ट्रॉन एक-दूसरे को बैलेंस रखते हैं. जब तक यह संतुलन बना रहता है, एटम स्थिर रहता है. लेकिन जब किसी कारण से इलेक्ट्रॉन्स की संख्या बढ़ जाती है, तो शरीर पर निगेटिव चार्ज जमा हो जाता है, जिससे अस्थिरता पैदा होती है.

करंट लगने की प्रक्रिया


जब शरीर में अतिरिक्त निगेटिव चार्ज जमा हो जाता है और हम किसी व्यक्ति या वस्तु को छूते हैं, तो ये निगेटिव इलेक्ट्रॉन्स(Negative Electrons) सामने वाले के पॉजिटिव चार्ज की ओर आकर्षित होते हैं. इस चार्ज ट्रांसफर के दौरान एक छोटा सा डिस्चार्ज होता है, जिसे हम हल्के करंट के रूप में महसूस करते हैं. इसे स्टैटिक एनर्जी कहते हैं. सर्दियों में यह ज्यादा होता है क्योंकि हवा में नमी की कमी से चार्ज लंबे समय तक शरीर पर जमा रहता है. यह प्रक्रिया पूरी तरह प्राकृतिक और सुरक्षित है.

झटके से बचने के उपाय


सर्दियों में स्टैटिक एनर्जी से बचने के लिए शरीर का चार्ज डिस्चार्ज करना जरूरी है. समय-समय पर अपने पैरों को नंगे जमीन से टच कराएं, ताकि शरीर में जमा अतिरिक्त इलेक्ट्रॉन्स जमीन में चले जाएं. अगर जूते पहन रखे हों, तो अपनी कोहनी या हाथों को दीवार या धातु की सतह से छूते रहें। यह प्रक्रिया शरीर के चार्ज को बैलेंस करती है और करंट लगने की संभावना को काफी हद तक कम कर देती है.

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