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Shravana Putrada Ekadashi 2024
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Shravana Putrada Ekadashi 2024 : नहीं हो रही है संतान, तो पुत्रदा एकादशी पर जरूर करे ये खास पाठ

Shravana Putrada Ekadashi 2024 :  सावन का महीना भगवान शिव की आराधना के लिए विशेष माना जाता है, और इस पवित्र समय में लोग शिवजी की पूजा-अर्चना करके उनके आशीर्वाद की कामना करते हैं। इस माह में एक महत्वपूर्ण पर्व आता है जिसे सावन पुत्रदा एकादशी कहते हैं। यह व्रत विशेष रूप से संतान प्राप्ति और संतान की सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है। सावन पुत्रदा एकादशी के दिन भगवान लक्ष्मीनारायण की पूजा करने से संतान सुख का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह व्रत विशेष रूप से उन नवविवाहित महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण होता है जो संतान सुख की इच्छा रखती हैं। मान्यता है कि इस व्रत के पुण्य प्रताप से भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की कृपा से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है और उनके परिवार में सुख-समृद्धि आती है। इस दिन महिलाएं विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा करती हैं और संतान की कामना के लिए संतान गोपाल स्तोत्र का पाठ अवश्य करती हैं। संतान गोपाल स्तोत्र का पाठ करना इस व्रत का मुख्य हिस्सा माना जाता है, जिससे व्रत रखने वाली महिला के जीवन में संतान सुख की प्राप्ति होती है। व्रत के दिन भगवान विष्णु को पीले वस्त्र, फल, फूल और पंचामृत से स्नान कराकर उनकी पूजा की जाती है। व्रतधारी को दिनभर उपवास रखकर भगवान का ध्यान करना चाहिए और संतान सुख की कामना करनी चाहिए। संध्या समय भगवान की आरती और भजन-कीर्तन करना विशेष लाभकारी माना गया है। सावन पुत्रदा एकादशी का व्रत करना सरल नहीं होता, लेकिन इसे विधि-विधान से करने पर मनोवांछित फल अवश्य प्राप्त होते हैं। यदि आप इस व्रत से संतान सुख की प्राप्ति चाहते हैं या अपने परिवार में सुख-शांति और समृद्धि की कामना करते हैं, तो इस व्रत के दौरान संतान गोपाल स्तोत्र का पाठ करना अत्यंत आवश्यक है। यह पाठ भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी का आशीर्वाद पाने में सहायक होता है, जिससे जीवन में खुशहाली और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। इस प्रकार, यह व्रत जीवन में हर दृष्टि से कल्याणकारी साबित होता है। संतान गोपाल स्तोत्रम् श्रीशं कमलपत्राक्षं देवकीनन्दनं हरिम् । सुतसम्प्राप्तये कृष्णं नमामि मधुसूदनम् ॥1॥ नमाम्यहं वासुदेवं सुतसम्प्राप्तये हरिम् । यशोदांकगतं बालं गोपालं नन्दनन्दनम् ॥ अस्माकं पुत्रलाभाय गोविन्दं मुनिवन्दितम् । नमाम्यहं वासुदेवं देवकीनन्दनं सदा ॥ गोपालं डिम्भकं वन्दे कमलापतिमच्युतम् । पुत्रसम्प्राप्तये कृष्णं नमामि यदुपुंगवम् ॥ पुत्रकामेष्टिफलदं कंजाक्षं कमलापतिम् । देवकीनन्दनं वन्दे सुतसम्प्राप्तये मम ॥ पद्मापते पद्मनेत्र पद्मनाभ जनार्दन । देहि में तनयं श्रीश वासुदेव जगत्पते ॥ यशोदांकगतं बालं गोविन्दं मुनिवन्दितम् । अस्माकं पुत्रलाभाय नमामि श्रीशमच्युतम् ॥ श्रीपते देवदेवेश दीनार्तिहरणाच्युत । गोविन्द मे सुतं देहि नमामि त्वां जनार्दन ॥ भक्तकामद गोविन्द भक्तं रक्ष शुभप्रद । देहि मे तनयं कृष्ण रुक्मिणीवल्लभ प्रभो ॥ रुक्मिणीनाथ सर्वेश देहि मे तनयं सदा । भक्तमन्दार पद्माक्ष त्वामहं शरणं गत: ॥ देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते । देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत: ॥ वासुदेव जगद्वन्द्य श्रीपते पुरुषोत्तम । देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत: ॥ कंजाक्ष कमलानाथ परकारुरुणिकोत्तम । देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत: ॥ लक्ष्मीपते पद्मनाभ मुकुन्द मुनिवन्दित । देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत: ॥ कार्यकारणरूपाय वासुदेवाय ते सदा । नमामि पुत्रलाभार्थं सुखदाय बुधाय ते ॥ राजीवनेत्र श्रीराम रावणारे हरे कवे । तुभ्यं नमामि देवेश तनयं देहि मे हरे ॥ अस्माकं पुत्रलाभाय भजामि त्वां जगत्पते । देहि मे तनयं कृष्ण वासुदेव रमापते ॥ श्रीमानिनीमानचोर गोपीवस्त्रापहारक । देहि मे तनयं कृष्ण वासुदेव जगत्पते ॥ अस्माकं पुत्रसम्प्राप्तिं कुरुष्व यदुनन्दन । रमापते वासुदेव मुकुन्द मुनिवन्दित ॥ वासुदेव सुतं देहि तनयं देहि माधव । पुत्रं मे देहि श्रीकृष्ण वत्सं देहि महाप्रभो ॥ डिम्भकं देहि श्रीकृष्ण आत्मजं देहि राघव । भक्तमन्दार मे देहि तनयं नन्दनन्दन ॥ नन्दनं देहि मे कृष्ण वासुदेव जगत्पते । कमलानाथ गोविन्द मुकुन्द मुनिवन्दित ॥ अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम । सुतं देहि श्रियं देहि श्रियं पुत्रं प्रदेहि मे ॥ यशोदास्तन्यपानज्ञं पिबन्तं यदुनन्दनम् । वन्देsहं पुत्रलाभार्थं कपिलाक्षं हरिं सदा ॥ नन्दनन्दन देवेश नन्दनं देहि मे प्रभो । रमापते वासुदेव श्रियं पुत्रं जगत्पते ॥ पुत्रं श्रियं श्रियं पुत्रं पुत्रं मे देहि माधव । अस्माकं दीनवाक्यस्य अवधारय श्रीपते ॥ गोपालडिम्भ गोविन्द वासुदेव रमापते । अस्माकं डिम्भकं देहि श्रियं देहि जगत्पते ॥ मद्वांछितफलं देहि देवकीनन्दनाच्युत । मम पुत्रार्थितं धन्यं कुरुष्व यदुनन्दन ॥ याचेsहं त्वां श्रियं पुत्रं देहि मे पुत्रसम्पदम् । भक्तचिन्तामणे राम कल्पवृक्ष महाप्रभो ॥ आत्मजं नन्दनं पुत्रं कुमारं डिम्भकं सुतम् । अर्भकं तनयं देहि सदा मे रघुनन्दन ॥ वन्दे सन्तानगोपालं माधवं भक्तकामदम् । अस्माकं पुत्रसम्प्राप्त्यै सदा गोविन्दच्युतम् ॥ ऊँकारयुक्तं गोपालं श्रीयुक्तं यदुनन्दनम् । कलींयुक्तं देवकीपुत्रं नमामि यदुनायकम् ॥ वासुदेव मुकुन्देश गोविन्द माधवाच्युत । देहि मे तनयं कृष्ण रमानाथ महाप्रभो ॥ राजीवनेत्र गोविन्द कपिलाक्ष हरे प्रभो । समस्तकाम्यवरद देहि मे तनयं सदा ॥ अब्जपद्मनिभं पद्मवृन्दरूप जगत्पते । देहि मे वरसत्पुत्रं रमानायक माधव ॥ नन्दपाल धरापाल गोविन्द यदुनन्दन । देहि मे तनयं कृष्ण रुक्मिणीवल्लभ प्रभो ॥ दासमन्दार गोविन्द मुकुन्द माधवाच्युत । गोपाल पुण्डरीकाक्ष देहि मे तनयं श्रियम् ॥ यदुनायक पद्मेश नन्दगोपवधूसुत । देहि मे तनयं कृष्ण श्रीधर प्राणनायक ॥ अस्माकं वांछितं देहि देहि पुत्रं रमापते । भगवन् कृष्ण सर्वेश वासुदेव जगत्पते ॥ रमाहृदयसम्भार सत्यभामामन:प्रिय । देहि मे तनयं कृष्ण रुक्मिणीवल्लभ प्रभो ॥ चन्द्रसूर्याक्ष गोविन्द पुण्डरीकाक्ष माधव । अस्माकं भाग्यसत्पुत्रं देहि देव जगत्पते ॥ कारुण्यरूप पद्माक्ष पद्मनाभसमर्चित । देहि मे तनयं कृष्ण देवकीनन्दनन्दन ॥ देवकीसुत श्रीनाथ वासुदेव जगत्पते । समस्तकामफलद देहि मे तनयं सदा ॥ भक्तमन्दार गम्भीर शंकराच्युत माधव । देहि मे तनयं गोपबालवत्सल श्रीपते ॥ श्रीपते वासुदेवेश देवकीप्रियनन्दन । भक्तमन्दार मे देहि तनयं जगतां प्रभो ॥ जगन्नाथ रमानाथ भूमिनाथ दयानिधे । वासुदेवेश सर्वेश देहि मे तनयं प्रभो ॥ श्रीनाथ कमलपत्राक्ष वासुदेव जगत्पते । देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत: ॥ दासमन्दार गोविन्द भक्तचिन्तामणे प्रभो । देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत: ॥ गोविन्द पुण्डरीकाक्ष रमानाथ महाप्रभो । देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत: ॥ श्रीनाथ कमलपत्राक्ष गोविन्द मधुसूदन । मत्पुत्रफलसिद्धयर्थं भजामि त्वां जनार्दन ॥ स्तन्यं पिबन्तं जननीमुखाम्बुजं विलोक्य मन्दस्मितमुज्ज्वलांगम् । स्पृशन्तमन्यस्तनमंगुलीभि- र्वन्दे यशोदांकगतं मुकुन्दम् ॥ याचेsहं पुत्रसन्तानं भवन्तं पद्मलोचन । देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत: ॥ अस्माकं पुत्रसम्पत्तेश्चिन्तयामि जगत्पते । शीघ्रं मे देहि दातव्यं भवता मुनिवन्दित ॥ वासुदेव जगन्नाथ श्रीपते पुरुषोत्तम । कुरु मां पुत्रदत्तं च कृष्ण देवेन्द्रपूजित ॥ कुरु मां पुत्रदत्तं च यशोदाप्रियनन्दन । मह्यं च पुत्रसंतानं दातव्यं भवता हरे ॥ वासुदेव जगन्नाथ गोविन्द देवकीसुत । देहि मे तनयं राम कौसल्याप्रियनन्दन ॥ पद्मपत्राक्ष गोविन्द विष्णो वामन माधव । देहि मे

Sawan 2024
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Sawan 2024 : सावन में नहीं खा रहे हैं प्याज लहसुन, तो ट्राई करें ये टेस्टी डिशेज

Sawan 2024 : सावन का महीना पवित्र माना जाता है और इस दौरान सात्विक खाया जाता है। इस दौरान आप भी बिना प्याज लहसुन वाला खाना खा रहे हैं तो आपको कुछ खास डिशेज के बारे में जान लेना चाहिए। आप इन सभी डिशेज को बिना प्याज और लहसुन के बना सकते हैं। सावन के पूरे महीने में शिव भक्त भगवान की भक्ति में लीन हो जाते हैं। अगर आप भी सोमवार का व्रत रखते हैं और भोलेनाथ की आराधना में लगे हुए हैं तो आपको भी इस दौरान सात्विक भोजन करना चाहिए। कई बार ऐसा होता है कि लोगों को बिना लहसुन प्याज का खाना पसंद नहीं आता। ऐसे लोगों के लिए कुछ खास डिशेज बताए गए हैं जो बिना लहसुन प्याज के स्वादिष्ट लगते हैं। बेसन की सब्जी बेसन की सब्जी एक राजस्थानी डिश है जिसमें स्पाइसी ग्रेवी को अच्छी तरह से पकाया जाता है। यह बिना प्याज लहसुन के बनाई जाती है और काफी स्वादिष्ट होती है। आप चाहे तो इस सब्जी को सिर्फ गरम मसाले के साथ बना सकते हैं और चावल के साथ खा सकते हैं। सावन के महीने में आप अपने सात्विक भोजन में इस रेसिपी को भी शामिल कर लीजिए। दही भिंडी अगर आप सावन के महीने में व्रत रख रहे हैं तो आपको दही भिंडी जैसी स्वादिष्ट डिश एक बार चख लेनी चाहिए। इस दिशा को बनाने के लिए लहसुन प्याज का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। इसे बनाने के लिए भिंडी को फ्राई कर लिया जाता है और मसाला बनकर तैयार किया जाता है। आप इस सब्जी को चावल या फिर रोटी के साथ खा सकते हैं। इस रेसिपी को आप सिर्फ सावन के महीने में ही नहीं बाकी दिनों में भी ट्राई कर सकते हैं। आलू गोभी अगर आपने भी सावन के महीने का व्रत रखा हुआ है, तो आपको लहसुन प्याज से हटकर आलू गोभी की सब्जी तरी करनी चाहिए। यह सब्जी आलू और गोभी की मदद से बनाई जाती है जो काफी स्पाइसी और मसालेदार होता है। इसे बनाने के लिए लहसुन प्याज का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। आप इस सब्जी को बनाने के लिए धनिया पाउडर जरा लाल मिर्च पाउडर गरम मसाले का इस्तेमाल कर सकते हैं। दाल तड़का दाल तड़का हर किसी को बहुत पसंद होता है लेकिन आप सोच रहे होंगे कि बिना लहसुन प्याज के याद तड़का कैसा लगेगा। हम आपको बता दे की दाल तड़का को बनाने के लिए आपको लहसुन प्याज की जरूरत नहीं पड़ेगी। आप दाल में तड़का लगाने के लिए हींग जीरा मिर्च गरम मसाले का इस्तेमाल कर सकते हैं। आपको दाल तड़का चावल या रोटी के साथ खाना चाहिए यह काफी स्वादिष्ट लगेगा। शाही पनीर शाही पनीर की बात आती है तो लोग तरह-तरह के मसले का इस्तेमाल करने के बारे में सोचते हैं ताकि सब्जी स्वादिष्ट बने। अगर आप सावन के महीने में सात्विक भोजन कर रहे हैं तो आपको इसमें प्याज लहसुन से परहेज करना होगा। शाही पनीर को बनाने के लिए आपको इसकी क्रीमी ग्रेवी बना लेनी चाहिए इसके बाद आपको लहसुन प्याज की बिलकुल जरुरत नहीं पड़ेगी। शाही पनीर की ग्रेवी में आपको टमाटर दही क्रीम और नारियल का दूध मिला लेना चाहिए। इस तरह से आप इस स्वादिष्ट डिश को पूरे मजे के साथ खा सकते हैं।

Kalki Jayanti 2024
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Kalki Jayanti 2024 : आज मनाई जा रही है कल्कि जयंती, जानिए क्या है पूजा मुहूर्त और विधि

Kalki Jayanti 2024 : हिंदू धर्म में कल्कि जयंती का विशेष महत्व होता है। इस दिन भगवान विष्णु के दसवें स्वरूप कल्कि की पूजा करने का विधान होता है। हर साल यह पर्व सावन माह के शुक्ल पक्ष तिथि को मनाया जाता है। इस साल यह तारीख 10 अगस्त यानी कि आज के दिन पड़ रही है। कल्कि जयंती के मान्यता के अनुसार इस दिन पूरे विधि विधान से भगवान की पूजा की जाती है जिससे शुभ फल की प्राप्ति होती है। सावन का महीना बहुत पवित्र होता है इस महीने में पूजा पाठ के लिए यह त्यौहार विशेष महत्व रखता है। सावन के महीने में कई त्यौहार आते हैं जो हिंदू धर्म में बेहद महत्वपूर्ण होते हैं। हिंदू धर्म में किसी भी पूजा पाठ का विशेष महत्व होता है यह पूजा भगवान विष्णु को समर्पित है और पूरी पवित्रता के साथ इसे करना चाहिए। कल्कि जयंती की मान्यता आज सभी लोग कल की जयंती मना रहे हैं। सावन के महीने में पढ़ने वाला यह दिन बहुत ही पवित्रता के साथ मनाया जाता है। इस दिन को लेकर कई सारी मान्यता होती है जिसके बारे में नीचे बताया गया है। हिंदू पंचांग के अनुसार देखा जाए तो कल्कि जयंती सावन माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को पड़ती है। आज 10 अगस्त को देर रात 3:14 पर या शुभ मुहूर्त पड़ रहा है इसका समापन 11 अगस्त की सुबह 5:44 पर होने वाला है। कल्कि जयंती की पूजा विधि कल्कि जयंती की पूजा करने के लिए आपको सुबह-सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए। इसके बाद आपको पूरी श्रद्धा के साथ इस दिन व्रत करके संकल्प लेना है। इसके बाद आपको एक विधि बनानी है और उसे पर भगवान विष्णु की तस्वीर की स्थापना करनी है। अब आपको भगवान विष्णु को चंदन का तिलक लगाना है और फूलों की माला पहनी है। इसके बाद आपको वैदिक मित्रों का जाप करना है। इतना करने के बाद आपको तुलसी पत्र के साथ पंचामृत समर्पित करना है। इस दिन पूजा पाठ करने के बाद दान दक्षिणा का विशेष महत्व होता है। कल्कि जयंती के दिन ब्राह्मणों को भोजन करने के साथ-साथ वस्त्र और उपयोगी वस्तुओं को दान किया जाता है जो लोग जरूरतमंद होते हैं उन्हें भोजन करना चाहिए और अगले दिन प्रसाद से व्रत को खोलना चाहिए। इस पूजा को करते समय आपको गलती करने से बचना चाहिए। भगवान विष्णु के नाम से इस दिन दान दक्षिणा करना शुभ माना जाता है। आप अपनी इच्छा अनुसार जो दान कर सकते हैं वह लोगों में वितरित कर दीजिए।

Dashrath Krit Shani Stotra
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Dashrath Krit Shani Stotra : इस तरह करें शनि देव की पूजा, मिनटों में चमकेगी फूटी किस्मत

Dashrath Krit Shani Stotra : शनिवार के दिन भगवान शनि देव की पूजा की जाती है इस पूजा को करने को लेकर कई तरह की विधि विधान होते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन छाया पुत्र की पूजा मनोभाव से की जाती है इससे मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। इतना ही नहीं शनिदेव की कृपा आपके परिवार पर बनी रहती हैं। जिन लोगों की कुंडली में शनि देव की दशा सही नहीं चल रही है उन्हें शनि स्त्रोत का पाठ करना चाहिए। सनातन धर्म की बात करें तो शनि देव की पूजा का विशेष महत्व शनिवार को माना जाता है। इसे लेकर कहा जाता है कि रवि पुत्र की पूजा करने से भाग या खुल जाता है। शनि देव की पूजा करने के लिए आपको रोजाना सुबह उठकर स्नान करना चाहिए और पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाना चाहिए। इसके अलावा शाम के समय सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए। इतना ही नहीं शनि देव की पूजा करते समय वैदिक मित्रों का जब भी जरूरी है। अगर आपकी कुंडली में शनि दोष है तो आपको शनि स्त्रोत का पाठ करना चाहिए। आप आजीवन जीवन में आने वाली सभी बाधाओं से दूर रहते हैं। शनि देव की पूजा करने से परिवार में सुख शांति बनी रहती है और शनि की वक्र दृष्टि आप पर नहीं पड़ती। इसके अलावा किसी भी क्षेत्र में आपको सफलता हासिल होती है। शनि स्त्रोत का पाठ नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च । नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम:॥ नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च । नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते ॥ नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:। नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते ॥ नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम:। नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने ॥ नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते । सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च ॥ अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते । नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते ॥ तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च । नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:॥ ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे । तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्॥ देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा:। त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत:॥ प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे । एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल:॥ दशरथ उवाच: प्रसन्नो यदि मे सौरे ! वरं देहि ममेप्सितम् । अद्य प्रभृति-पिंगाक्ष ! पीडा देया न कस्यचित् ॥ ।।शनि देव आरती।। जय-जय श्रीशनिदेव भक्तन हितकारी। सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी ।। जय-जय ।। श्याम अंक वक्र दृष्ट चतुर्भुजा धारी । नीलाम्बर धार नाथ गज की असवारी ।। जय-जय ।। क्रीट मुकुट शीश राजित दिपत है लिलारी । मुक्तन की माला गले शोभित बलिहार ।। जय-जय ।। मोदक मिष्ठान पान चढ़त है सुपारी । लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी ।। जय-जय ।। देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी । विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी ।। जय-जय ।। नियम से होती है शनि देव की पूजा शनि देव की पूजा करते समय आपको नियमों का पालन करना होता है। आपको रोजाना सुबह उठकर स्नान करने के बाद शनि देव की पूजा करनी है। पीपल के वृक्ष में जल चढ़ाना है इसके बाद आपको शाम को सरसों तेल का दीपक दिखाना चाहिए। शनिवार के दिन आपको काले कुत्ते को रोटी खिलानी चाहिए इससे आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। ध्यान रहे की शनिदेव की पूजा विधि करते समय आपको पवित्रता का खूब ध्यान रखना है। शनिवार के दिन दानकुनी का भी विशेष महत्व होता है।  

Happy Teej 2024
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Happy Teej 2024 : Simple Homemade Snacks to Celebrate the Festival

Happy Teej 2024 : One such vibrant and joyous festival is Teej, which heralds the arrival of the monsoon in India and Nepal. It’s a time for feasting, fasting, and celebrating with loved ones. Much as the act of fasting is central to Teej, this festival is also associated with the preparation and serving of a wide range of delicacies. As the year 2024 ushers in Teej, here are a host of delicious and easy-to-make snacks you can prepare at home to make the occasion all that special. Ghewar Essentially, this is a very traditional sweet, disk-shaped in appearance, made with wheat flour, ghee, and sugar syrup and is usually garnished with almond slivers. This traditional dessert from Rajasthan serves exclusively during Teej. It may appear a bit difficult to prepare at home; however, a little practice can help you master this delicate dish. Mix flour, ghee, and water to have a batter for the same. Deep-fry the batter in ghee until a lacey texture forms, then coat it in sugar syrup and sprinkle with nuts for finishing touches. Besan Ladoo Besan Ladoo is an easy and mouthwatering dessert that requires just gram flour, ghee, and sugar. For these, for instance, roast the gram flour in ghee until it turns golden brown and has a raised smell of nuts. Add the cardamom powder and sugar to the mixture. Then, shape into small balls. These ladoos are a favorite among children and adults alike but are really very easy to be made. Samosa Samosas are one of the all-time Indian snacks and an integral part of Teej celebrations. Spicy potato fillings boost the flavor of the crispy pastry pockets, making them too good to resist. To prepare samosas, first make a dough with flour, oil, and water, then fill it with boiled potatoes, peas, and spices; deep-fry the samosas until golden brown and enjoy with mint chutney, hot. Kachori Kachoris are another perfect Teej snack, those deep-fried pastries stuffed with a spicy lentil mixture. Soak the lentils and grind them with the spices for the filling. Then, encase it within a dough of wheat flour and water, fry crispy, and enjoy with any chutney of your choice. Malpua Malpua is a pancake sweet dessert that is exemplary during festivals. To make the malpua, prepare a batter with flour, milk, and sugar. Fry them until it turns golden brown in color. Dip the malpuas in sugar syrup after frying and serve warm, sprinkled with chopped nuts. Bring Home these Easy-to-Make Snacks with Family and Friends during Teej 2024. These homemade treats will add fun and flavor to the celebrations, making them even more memorable.

Nag Panchami
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Nag Panchami 2024 : Date, Shubh Muhurat, and Significance Explained

Nag Panchami 2024 : Nag Panchami is one of the major festivals of Hindus connected with the worship of serpent deity gods, predominantly followed by women everywhere in India. This festival holds a great amount of religious significance for many devotees who pray for blessings from the snake deities, which have a special mention in Hindu mythology. According to Drik Panchang, the day of Nag Panchami falls on the Shukla Paksha Panchami in the holy month of Sawan. Significance of Nag Panchami The Hindus celebrate Nag Panchami with great reverence, believing that any puja or offering made to snakes will reach their serpent gods. Therefore, live snakes are usually worshipped on that day, serving as the representatives of those divine beings. Serpent gods, or Nagas, in Hinduism are worshiped for two major reasons, protection and divinity. Among hundreds of snake deities, twelve are more worshipped during the puja of Nag Panchami: Ananta, Vasuki, Shesha, Padma, Kambala, Karkotaka, Ashvatara, Dhritarashtra, Shankhapala, Kaliya, Takshaka, and Pingala. The epic Mahabharata also contains the relevance of the festival. Out of vengeance, following his father’s death due to snakebite, the legendary King Janamejaya, Parikshit’s son, launched a yajna to exterminate all of them. This yajna was done very powerfully, and it reached a point where it was going to destroy all the snakes. At this point, the intervention of Sage Astika, one of the wisest and most learned sages, stopped the yajna and saved the snakes from becoming extinct. It is said that this yajna was finally stopped on Panchami Tithi, and so it is celebrated as Nag Panchami. This story brings out the basic tenets of the festival: forgiveness, protection of all life, and the sanctity of life. Nag Panchami: Puja Rituals The rituals associated with Nag Panchami are deeply symbolic and are performed with a lot of devotion. Devotees start the day by getting up early, preferably before sunrise, and then take a purifying bath. After cleaning themselves, they prepare for the worship of the snake god, along with Lord Shiva to whom serpents are otherwise significantly related in Hindu mythology. In this puja, one offers fruits, flowers, sweets, and milk to the Nag Devta, the serpent god. All this offering is done to show respect to these serpent deities and to satisfy them. Moreover, offering milk is very auspicious and considered to please the serpents by satisfying their hunger. More importantly, Nag Panchami becomes special for all those who have Kaalsarp Dosh or any other astrological affliction regarding the planets Rahu and Ketu in their horoscope. According to popular beliefs, it is performed to alleviate the fallacies of these planetary positions with the puja of Nag Devta, which will ensure peace and prosperity in the devotee’s life. Nag Panchami is much more than a worship day; it serves as a channelized thinking process, reflecting upon the peaceful coexistence between man and nature. Serpent god worship by their devotees makes them realize respect for these creatures—powerful and mysterious yet playing their role in the cosmic scheme of things. Through the rituals and stories associated with Nag Panchami, one remembers balance, protection, and reverential preservation of all living beings. With the festival drawing closer, the beginning of such holy rituals would be started by these devotees. Praying to the serpent deity for keeping them and their families in good health would become the requisite spirit. The Nag Panchami observance remains one of the integral traditions within the Hindu culture and reflects deep spiritual bonding between man and nature.  

Hariyali Teej 2024
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Hariyali Teej 2024 : शादीशुदा जिंदगी में चाहते हैं मिठास? जरूर करें माता पार्वती की पूजा

Hariyali Teej 2024 : हिन्दू धर्म में सावन के महीने में हरियाली तीज का पर्व विशेष महत्व रखता है। यह पर्व हर साल श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है और महिलाओं के लिए यह दिन बेहद शुभ माना जाता है। हरियाली तीज भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा के लिए समर्पित होता है और इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और दांपत्य जीवन में सुख-समृद्धि की कामना के लिए व्रत करती हैं। हरियाली तीज के दिन महिलाएं विशेष रूप से कठिन व्रत का पालन करती हैं। इस दिन वे निर्जला उपवास रखती हैं और दिनभर उपवास के बाद भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करती हैं। मान्यता है कि इस दिन कठिन व्रत करने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है और पति-पत्नी के रिश्तों में प्रेम और स्नेह बढ़ता है। पूजा के दौरान महिलाएं हरे रंग के वस्त्र पहनती हैं और विशेष रूप से हरियाली तीज के उपलक्ष्य में हरे रंग की सामग्री जैसे फूल और पत्ते भी अर्पित करती हैं। अगर आप हरियाली तीज के दिन अपने जीवन में सुख और समृद्धि लाना चाहते हैं, और आपके वैवाहिक जीवन को खुशहाल बनाना चाहते हैं, तो आपको इस खास अवसर पर विशेष आरती जरूर करनी चाहिए। माता पार्वती की आरती जय पार्वती माता जय पार्वती माता। ब्रह्म सनातन देवी शुभ फल कदा दाता।। जय पार्वती माता जय पार्वती माता। अरिकुल पद्मा विनासनी जय सेवक त्राता जग जीवन जगदम्बा हरिहर गुणगु गाता। जय पार्वती माता जय पार्वती माता। सिंह को वाहन साजे कुंडल है साथा देव वधुजहं गावत नृत्य कर ताथा। जय पार्वती माता जय पार्वती माता। सतयुग शील सुसुन्दर नाम सती कहलाता हेमांचल घर जन्मी सखियन रंगराता। जय पार्वती माता जय पार्वती माता। शुम्भ निशुम्भ विदारेहेमांचल स्याता सहस भुजा तनुधरिके चक्र लियो हाथा। जय पार्वती माता जय पार्वती माता। सृष्ट‍ि रूप तुही जननी शिव संग रंगराता नंदी भृंगी बीन लाही सारा मदमाता। जय पार्वती माता जय पार्वती माता। देवन अरज करत हम चित को लाता गावत दे दे ताली मन मेंरंगराता। जय पार्वती माता जय पार्वती माता। श्री प्रताप आरती मैया की जो कोई गाता सदा सुखी रहता सुख संपति पाता। जय पार्वती माता मैया जय पार्वती माता। शिव जी की आरती जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा । ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव…॥ एकानन चतुरानन पंचानन राजे । हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव…॥ दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे। त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव…॥ अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी । चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव…॥ श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे । सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव…॥ कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता । जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव…॥ ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका । प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव…॥ काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी । नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव…॥ त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे । कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव…॥ हरियाली तीज के दिन भगवान शिव और देवी पार्वती की आरती और पूजा करने से दांपत्य जीवन में सुख और शांति बनी रहती है। यह पर्व पति-पत्नी के रिश्ते को मजबूत बनाने का एक महत्वपूर्ण अवसर होता है। इस दिन के व्रत और पूजा से जीवन में खुशियाँ और समृद्धि आती है, जिससे जीवन और भी सुखमय हो जाता है।  

Budh Stotram
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Budh Stotram : कुंडली के ग्रहों को करना चाहते हैं मजबूत? बुधवार के दिन जरूर करें यह पाठ

Budh Stotram : किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत से पहले भगवान गणेश की पूजा करना भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। गणेश जी को विघ्नहर्ता कहा जाता है, जिसका अर्थ है कि वे सभी बाधाओं को दूर करते हैं। अगर किसी भी शुभ कार्य से पहले गणेश जी की पूजा की जाए, तो उस काम में कोई बाधा नहीं आती है। गणेश जी की पूजा इतनी आसान नहीं होती है, इसमें कई बातों का ध्यान रखना होता है। आज हम आपको बुधवार को गणेश जी की पूजा के बारे में बताएंगे। इस तरह करे भगवान गणेश जी की पूजा सबसे पहले, पूजा स्थल और अपने मन को स्वच्छ करें, स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें और पूजा स्थल को साफ करें। गणेश जी की मूर्ति या चित्र को एक स्वच्छ और पवित्र स्थान पर स्थापित करें और उन्हें एक सुंदर और स्वच्छ आसन पर विराजमान करें। गणेश जी की मूर्ति को गंगा जल या स्वच्छ जल से स्नान कराएं और सिंदूर व चंदन का तिलक लगाएं। गणेश जी को लाल या सफेद फूल अर्पित करें, साथ ही दूर्वा (घास) भी अर्पित करें क्योंकि यह उन्हें विशेष प्रिय है। धूप और दीप जलाएं जिससे वातावरण शुद्ध हो और सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो। गणेश जी को मोदक, लड्डू या उनका प्रिय भोग अर्पित करें। “ॐ गण गणपतये नमः” मंत्र का जाप करें और गणेश जी की आरती करें। पूजा समाप्त होने के बाद प्रसाद को सभी में बांटें। बुधवार के दिन जरूर करें इस स्तोत्र का पाठ पीताम्बर: पीतवपु किरीटी, चतुर्भुजो देवदु:खापहर्ता । धर्मस्य धृक सोमसुत: सदा मे, सिंहाधिरुढ़ो वरदो बुधश्च ।।1।। प्रियंगुकनकश्यामं रूपेणाप्रतिमं बुधम । यह विडियो भी देखें सौम्यं सौम्यगुणोपेतं नमामि शशिनन्दनम ।।2।। सोमसुनुर्बुधश्चैव सौम्य: सौम्यगुणान्वित: । सदा शान्त: सदा क्षेमो नमामि शशिनन्दनम ।।3।। उत्पातरूपी जगतां चन्द्रपुत्रो महाद्युति: । सूर्यप्रियकरोविद्वान पीडां हरतु मे बुधं ।।4।। शिरीषपुष्पसंकाशं कपिलीशो युवा पुन: । सोमपुत्रो बुधश्चैव सदा शान्तिं प्रयच्छतु ।।5।। श्याम: शिरालश्चकलाविधिज्ञ:, कौतूहली कोमलवाग्विलासी । रजोधिको मध्यमरूपधृक स्या-दाताम्रनेत्रो द्विजराजपुत्र: ।।6।। अहो चन्द्रासुत श्रीमन मागधर्मासमुदभव: । अत्रिगोत्रश्चतुर्बाहु: खड्गखेटकधारक: ।।7।। गदाधरो नृसिंहस्थ: स्वर्णनाभसमन्वित: । केतकीद्रुमपत्राभ: इन्द्रविष्णुप्रपूजित: ।।8।। ज्ञेयो बुध: पण्डितश्च रोहिणेयश्च सोमज: । कुमारो राजपुत्रश्च शैशवे शशिनन्दन: ।।9।। गुरुपुत्रश्च तारेयो विबुधो बोधनस्तथा । सौम्य: सौम्यगुणोपेतो रत्नदानफलप्रद: ।।10।। एतानि बुधनामानि प्रात: काले पठेन्नर: । बुद्धिर्विवृद्धितां याति बुधपीडा न जायते ।।11।। ।। इति मंत्रमहार्णवे बुधस्तोत्रम ।। मिलते है ये खास लाभ कुंडली में बुध ग्रह को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि यह हमारे बुद्धि, संवाद और व्यापार के क्षेत्र को प्रभावित करता है। यदि आपकी कुंडली में बुध ग्रह कमजोर हो, तो इससे कई समस्याएं हो सकती हैं। इसलिए हर बुधवार या नियमित रूप से बुध स्तोत्र का पाठ करके आप अपने कुंडली में बुध ग्रह को मजबूत बना सकते हैं। बुध स्तोत्र का 108 बार जाप करने से बहुत अच्छा प्रभाव पड़ता है। जाप करते समय हरे रंग के वस्त्र धारण करना शुभ माना जाता है क्योंकि यह बुध देव को प्रसन्न करता है। बुध ग्रह के प्रभाव से व्यक्ति का मानसिक संतुलन बेहतर होता है और वह कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी सही निर्णय ले पाता है। इसके अलावा, बुध ग्रह व्यापार और संचार से संबंधित कार्यों में भी सफलता दिलाता है। इसके साथ ही, बुध ग्रह का अच्छा प्रभाव जीवन में धन-संपत्ति की वृद्धि करता है और व्यक्ति की आर्थिक स्थिति को भी मजबूत बनाता है। इसलिए बुध ग्रह को मजबूत करने के लिए नियमित रूप से बुध स्तोत्र का पाठ करना और बुध देव की पूजा करना अत्यंत लाभकारी होता है।  

Mangala Gauri Vrat
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Mangala Gauri Vrat : मंगला गौरी व्रत पर इस पाठ को करने से सभी परेशानियों से मिलेगी मुक्ति

Mangala Gauri Vrat : मंगला गौरी व्रत सावन के महीने के हर मंगलवार को रखा जाता है और इसका धार्मिक महत्व बहुत अधिक है। यह दिन भगवान शिव और माँ पार्वती के समर्पित होता है। इस दिन महिलाएं विशेष रूप से इस व्रत को रखती हैं ताकि उन्हें मनोवांछित फल प्राप्त हो सकें। मंगला गौरी व्रत का उद्देश्य जीवन में सुख, समृद्धि और शांति की प्राप्ति करना होता है। मंगला गौरी व्रत का महत्व मंगला गौरी व्रत का महत्व विशेष रूप से विवाहित महिलाओं के लिए है, लेकिन अविवाहित लड़कियां भी इसे रख सकती हैं। यह माना जाता है कि इस व्रत को करने से जीवन में आए सभी दुख और संकट दूर हो जाते हैं। महिलाएं इस दिन भगवान शिव और माँ पार्वती की पूजा करती हैं, और उनका ध्यान रखना जरूरी होता है। इस व्रत को रखने से जीवन में खुशियों का आगमन होता है और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है। इसके साथ ही, महिलाएं अपनी इच्छाओं और मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए भी इस दिन विशेष प्रार्थना करती हैं। ॥ श्री शिवरामाष्टकस्तोत्रम् ॥ शिवहरे शिवराम सखे प्रभो,त्रिविधताप-निवारण हे विभो। अज जनेश्वर यादव पाहि मां,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम्॥ कमल लोचन राम दयानिधे,हर गुरो गजरक्षक गोपते। शिवतनो भव शङ्कर पाहिमां,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम्॥ स्वजनरञ्जन मङ्गलमन्दिर,भजति तं पुरुषं परं पदम्। भवति तस्य सुखं परमाद्भुतं,शिवहरे विजयं कुरू मे वरम्॥ जय युधिष्ठिर-वल्लभ भूपते,जय जयार्जित-पुण्यपयोनिधे। जय कृपामय कृष्ण नमोऽस्तुते,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम्॥ भवविमोचन माधव मापते,सुकवि-मानस हंस शिवारते। जनक जारत माधव रक्षमां,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम्॥ अवनि-मण्डल-मङ्गल मापते,जलद सुन्दर राम रमापते। निगम-कीर्ति-गुणार्णव गोपते,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम्॥ पतित-पावन-नाममयी लता,तव यशो विमलं परिगीयते। तदपि माधव मां किमुपेक्षसे,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम्॥ अमर तापर देव रमापते,विनयतस्तव नाम धनोपमम्। मयि कथं करुणार्णव जायते,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम्॥ हनुमतः प्रिय चाप कर प्रभो,सुरसरिद्-धृतशेखर हे गुरो। मम विभो किमु विस्मरणं कृतं,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम्॥ नर हरेति परम् जन सुन्दरं,पठति यः शिवरामकृतस्तवम्। विशति राम-रमा चरणाम्बुजे,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम्॥ प्रातरूथाय यो भक्त्या पठदेकाग्रमानसः। विजयो जायते तस्य विष्णु सान्निध्यमाप्नुयात्॥ पूजा विधि मंगला गौरी व्रत की पूजा विधि को समझना आवश्यक है। इस दिन पूजा करने के लिए निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होती है: फल दीया देसी घी मिठाई कपास सौलह शृंगार पान और सुपारी लौंग और इलायची फूल पंचमेवा माचिस धूप लाल वस्त्र आसन देवी माँ की प्रतिमा गंगाजल और शुद्ध जल घर पर बना भोग, जैसे गुड़ की खीर और हलवा पूजा के समय, शिवरामाष्टक स्तोत्र का पाठ करना बहुत लाभकारी माना जाता है। यह स्तोत्र विशेष रूप से भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने में मदद करता है। व्रत का समय और शुभ मुहूर्त इस साल (2024) मंगला गौरी व्रत सावन के तीसरे मंगलवार को मनाया जाएगा। ज्योतिषियों के अनुसार, इस दिन वरीयान योग का निर्माण होगा, जो सुबह 11 बजे तक रहेगा। भगवान शिव शाम 7 बजकर 52 मिनट तक मां गौरी के साथ कैलाश पर विराजमान रहेंगे। मंगला गौरी व्रत एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है, जो न केवल महिलाएं बल्कि सभी लोग रख सकते हैं। यह व्रत जीवन में सुख और समृद्धि की प्राप्ति के लिए विशेष रूप से फायदेमंद है। अगर आप भी शिव-शक्ति की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो मंगला गौरी व्रत को विधि-विधान से करें और इसके साथ ही पूजा के समय शिवरामाष्टक स्तोत्र का पाठ करें। इस व्रत के माध्यम से आप अपनी सभी समस्याओं से मुक्ति पा सकते हैं और अपने जीवन में खुशियों का स्वागत कर सकते हैं।

Hariyali Teej 2024
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Hariyali Teej 2024 : हरियाली तीज पर क्यों होता है हरे रंग का महत्व, जानिए सच्चाई

Hariyali Teej 2024 : हिंदू धर्म में हरियाली तीज का विशेष महत्व होता है। हरियाली तीज के दिन सुहागिन महिलाएं हरे रंग के कपड़े चूड़ी बिंदिया दी पहनकर अपना श्रृंगार करती है। बहुत कम लोगों को यह पता है की हरियाली तीज के मौके पर हरे रंग का इतना महत्व क्यों होता है। हरियाली तीज का पर्व बहुत खास होता है। इस दिन महिलाएं व्रत रखकर अखंड सौभाग्य की प्राप्ति और पति की लंबी उम्र के लिए कामना करती हैं। इसके अलावा जो लड़कियां हरियाली तीज का व्रत रखती हैं उन्हें मनचाहा वर मिलता है। अगर आप भी सावन के महीने में हरियाली तीज का व्रत रख रही है तो जान दीजिए कि हरे रंग का विशेष महत्व क्या है। हरियाली तीज का व्रत बहुत ही नियमों के साथ किया जाता है। कब है हरियाली तीज हिंदू पंचांग के अनुसार हरियाली तीज का व्रत सावन महीने में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को रखा जाता है। इस साल हरियाली तीज का व्रत 7 अगस्त 2024 को रखा जाएगा। इस दिन सभी महिलाएं हरियाली तीज का व्रत रखेंगी। इतना ही नहीं इस दिन सोलह सिंगार करने का विधान होता है खासकर हरे रंग का विशेष महत्व होता है। सनातन धर्म के अनुसार हरा रंग सुख शांति हरियाली तरक्की और अच्छी सेहत का प्रतीक माना जाता है। यही वजह है की हरियाली तीज के दिन हरे रंग के कपड़े और बाकी चीजों को हरे रंग में इस्तेमाल करने का विधान है। पहने जाते हैं हरे रंग के वस्त्र हरियाली तीज के पावन मौके पर चारों तरफ हरियाली छाई रहती है। सावन के महीने में महिलाएं हरे रंग की चूड़ियां पहनती हैं। इतना ही नहीं प्रकृति भी प्रेरणा देती है इसलिए हरियाली तीज के दिन महिलाएं हरे रंग की साड़ियां चूड़ियां पहनती हैं। इसके अलावा यह भी माना जाता है कि हरे रंग के कपड़े पहनने से भगवान शिव पार्वती भी प्रसन्न होते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हर रंग में किसी न किसी ग्रह का वास होता है। इसी तरह से हरे रंग में बुध ग्रह होते हैं हरा रंग पहनने से कुंडली में बुध ग्रह प्रबल हो जाते हैं और जीवन में खुशहाली आती है। हरियाली तीज के नियम अगर आप भी एक महिला है और हरियाली तीज का व्रत रख रही है, तो इस दिन आपको कड़ी नियम का पालन करना होता है। हरियाली तीज के दिन व्रत को पवित्र तरीके से रखा जाता है। इस दौरान घर में मांस मदिरा का सेवन बिलकुल नहीं होना चाहिए। हरियाली तीज भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित होता है। इस दिन आपको इन भगवान की पसंद के भोग लगाना चाहिए। इसके अलावा आप पवित्र तरीके से भगवान की पूजा पाठ करके अपने घर में सुख शांति ला सकते हैं। हरियाली तीज के दिन महिलाएं ब्रह्म मुहूर्त में उठती हैं इसके बाद स्नान करके हरे रंग के वस्त्र पहनने के बाद पूजा पाठ की तैयारी करती हैं।

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