Ripples of War : रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध अपने तीसरे वर्ष में प्रवेश कर गया है. फरवरी 2022 में जब रूस ने पहली बार यूक्रेन पर हमला किया तो माना जा रहा था कि रूस जैसा शक्तिशाली देश 2 लाख से भी कम सैनिक वाले देश यूक्रेन पर शीघ्र विजय हासिल कर लेगा. रूसी राष्ट्रपति पुतिन को उम्मीद थी कि जैसे उन्होंने 2008 में जॉर्जिया और 2014 में क्रीमिया में किया था वैसी ही जीत यूक्रेन पर भी हासिल कर लेंगे. यूक्रेन की मदद के लिए पश्चिमी देशों की ओर से सैन्य सहायता, प्रशिक्षण और अंतरराष्ट्रीय भाड़े के सैनिक भेजे गए, जिसका परिणाम रहा की रूस को भी अपने मित्रवत देशों की ओर मदद के लिए झुकना पड़ा.
अमेरिका के दुश्मन देशों से रूस बढ़ा रहा है दोस्ती
युद्ध शुरू होने के बाद रूस ने पहले चीन से अपने रिश्तों को मजबूत करने पर जोर दिया तो वहीं 24 साल में पहली बार पुतिन उत्तर कोरिया के दौरे पर गए. जहां उन्होंने उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन से मुलाकात की. यूक्रेन से युद्ध शुरू होने के पश्चात रूस उन देशों के आगे अपने दोस्ती के हाथ फैला रहा है जिन देशों का अमेरिका के साथ तनाव चल रहा है. रूस यूक्रेन के बीच शुरू हुआ युद्ध अब केवल दो देशों तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि इस युद्ध की वजह से दुनिया तीन धड़ों में बटनी शुरू हो गई है. कई देश यूक्रेन के पक्ष में है तो कई देश रूस के सहयोग में. भारत जैसे कई देश अभी भी निष्पक्ष बने हुए हैं.
रूस-यूक्रेन युद्ध में पश्चिम की रणनीति क्या है
रूस के खिलाफ युद्ध में यूक्रेन को टिके रहने के लिए आर्थिक सहायता के साथ-साथ सैन्य सहायता भी पश्चिमी देशों की ओर से पहुंचाई जा रही है. इसी वर्ष 2024 में अमेरिका में राष्ट्रपति का चुनाव होना है. जिसमें एक बार पुनः बाइडेन और डोनाल्ड ट्रंप के बीच मुकाबला होने वाला है. विशेषज्ञों का मानना है कि इस चुनाव का असर यूक्रेन को दी जाने वाली सहायता पर भी देखने को मिल सकता है.
प्रतिबंधों का रूस पर प्रभाव
रूस की अर्थव्यवस्था को कमजोर करने के लिए यूक्रेन युद्ध के बाद कई तरीके के प्रतिबंध लगाए गए. यूरोप के देशों ने रूस से आने वाली ऊर्जा की खरीदारी में कटौती की. लेकिन रूस ने इन देशों को छोड़कर भारत चीन और ब्राजील जैसी बड़ी विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को भारी छूट पर कच्चे तेल की सप्लाई शुरू कर दिया. इतना ही नहीं इन कच्चे तेलों की सप्लाई के लिए रूस ने खुद की शिपिंग जहाज का एक बेड़ा भी इकट्ठा कर लिया. रूस डॉलर की जगह अन्य मुद्राओं की ओर रुख करने लगा. मुख्य रूप से रूस ने चीनी मुद्रा युआन को अपनाया.
रूस यूक्रेन युद्ध का विश्व पर प्रभाव
युद्ध शुरू होने के बाद रूस के दो पड़ोसी देश स्वीडन और फिनलैंड अपनी सुरक्षाओं को मजबूती देने के लिए नाटो में शामिल हो गए. रूस कई वर्षों से यूरोप के देशों के साथ अपने आर्थिक संबंध मजबूत बनाने की कोशिश में लगा था जो इस युद्ध की वजह से अब टूट चुका है. रूस का उसके पड़ोसी देशों पर पकड़ कमजोर हो रही है. इस युद्ध की वजह से रूस के कई पड़ोसी देश नाटो में शामिल होने की कतार में खड़े हैं.