Space Docking Experiment: स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट मिशन( PSLV – C60 SpaDeX) को लांच करके भारत ने एक बड़ा कमाल कर दिया है. श्रीहरिकोटा में स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से सोमवार की रात 10 बजे 44.5 मीटर लंबे ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV) -सी60 रॉकेट ने दो छोटे अंतरिक्षयानों चेजर और टारगेट के साथ सफलता की उड़ान भरी. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने कहा,”दोनों अंतरिक्षयान सफलतापूर्वक अलग हो गए हैं। चेजर ओर टारगेट को कक्षा में स्थापित कर दिया गया.
मिशन निदेशक एम. जयकुमार ने कहा कि मिशन सफल हो गया. वही इसरो प्रमुख एस. सोमनाथ ने कहना है कि ,रॉकेट ने 15 मिनट की उड़ान के बाद ही अंतरिक्षयानों को 475 किलोमीटर की वृत्ताकार कक्षा में स्थापित कर दिया. उन्होंने ने आगे कहा है कि डॉकिंग की पूरी प्रक्रिया संभवत: अगले एक सप्ताह में पूरी हो जाएगी.
#WATCH | Indian Space Research Organisation (ISRO) launches PSLV-C60 with SpaDeX and innovative payloads from Sriharikota, Andhra Pradesh. First stage performance normal
SpaDeX mission is a cost-effective technology demonstrator mission for the demonstration of in-space docking… pic.twitter.com/ctPNQh4IUO
— ANI (@ANI) December 30, 2024
डॉकिंग तथा अनडॉकिंग क्षमता को प्रदर्शित करने वाला चौथा देश बना भारत(Space Docking Experiment)
स्पैडेक्स मिशन के पूरा होने के बाद भारत डॉकिंग और अनडॉकिंग की क्षमता वाला चौथा देश बनेगा. पूरे विश्व में अभी केवल तीन देश अमेरिका, चीन तथा रूस अंतरिक्षयान को अंतरिक्ष में डॉक करने में सक्षम हैं. अंतरिक्षयान से दूसरे अंतरिक्षयान के जुड़ने को डॉकिंग और अंतरिक्ष में जुड़े दो अंतरिक्ष यानों के अलग होने को अनडॉकिंग कहते हैं.
ISRO ने इस साल की शुरुआत अंतरिक्ष में एक्सरे किरणों का अध्ययन करने वाले मिशन एक्सपोसेट की लॉचिंग के साथ की थी. इसके कुछ ही दिनों बाद अपने पहले सूर्य मिशन ‘आदित्य’ में कामयाबी हासिल की. अब वर्ष का अंत भी भारत ने ऐसे मिशन की लॉचिंग के साथ किया जो अंतरिक्ष में देश के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को अपने बलबूते हासिल करने के लिए बेहद जरूरी है.
इस मिशन के साथ ही विज्ञानी पीओईएम-4 यानी पीएसएलवी आर्बिटल एक्सपेरिमेंटल माड्यूल-4 के तहत प्रयोग भी करेंगे. भारत तीन बार इस तरह का प्रयोग पहले भी कर चुका है. इन प्रयोगों के लिए PSLV60 अपने साथ 24 पेलोड को लेकर जाता है इनमें से 14 विभिन्न इसरो प्रयोगशालाओं से होते हैं और 10 प्राइवेट विश्वविद्यालयों और स्टार्ट अप से होते हैं.
डेब्रिस कैप्चर रोबोटिक मैनिपुलेटर,अंतरिक्ष वातावरण में कचरे को कैप्चर करने की क्षमता रखता है. पहले इसरो ने पीएसएलवी सी-58 राकेट का प्रयोग करके पोएम-3 और पीएसएलवी-सी55 मिशन में पीओईएम-2 का इस्तेमाल करके एक सफल प्रयोग किया था. अंतरिक्ष कचरे की समस्या से निपटने में भी मदद मिलेगी. इसरो के POEM मिशन से अंतरिक्ष कचरे की समस्या से भी निजात मिलेगी. पीओईएम इसरो का प्रायोगिक मिशन है. इस तरह से कक्षीय प्लेटफार्म के रूप में PS 4 चरण का उपयोग करके कक्षा में वैज्ञानिक प्रयोग होता है.